सलाह कोई बुरी बात नहीं लेकिन जिस तरह राजीव शुक्ला ने उपसभापति को प्रभावित किया, ओपन माइक से उस सलाह को सबने सुना, उससे निश्चय ही सदन की गरिमा आहत हुई है।
संसदीय कार्यवाही का स्थगन आवश्यकता होने पर ही लगे तो सार्थक है। वरना कार्यवाही रोकना सत्ताधारी दलों के लिए मुद्दों से बचने का हथियार बनता जा रहा है। इस पर देश का मत जानना जरूरी है। चुने हुए प्रतिनिधि जनता के शासक नहीं, प्रतिनिधि ही हैं। उन्हें लोकतंत्र को गतिशील बनाए रखने के लिए प्रतिनिधित्व का अधिकार मिला है, न कि कानाफूसी करके लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रभावित करने का प्रतिनिधित्व दिया गया है।
लो कतंत्र के मंदिर की आसंदी पर सलाह की स्याही बिखर गई। राज्यसभा में संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला द्वारा उपसभापति पीजे कुरियन को दी गई सलाह और उसके परिपालन से ऐसा हुआ। दरअसल, राज्य सभा में कैग की रिपोर्ट और कोयले पर चर्चा के लिए विपक्ष हंगामा की परंपरा का निर्वाह कर रहा था। हंगामे का अंदाजा राजीव शुक्ला कर चुके थे। उन्होंने उपसभापति की आसंदी के पास जाकर सलाह दी कि हंगामा होते ही दिन भर के लिए हाउस एडर्जन कर दीजिए। उपसभापति से राजीव शुक्ला की यह कानाफूसी माइक चालू रहने से पूरे सदन को सुनाई दी। तत्काल उपसभापति ने सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी। इस सलाह ने संसदीय कार्यवाही को एक नमूना बना दिया। ऐसा कई लोकल सभाओं में होता रहता है, जब पूरी सभा चालू माइक के माध्यम से पंच या वरिष्ठ सदस्य की कानाफूसी सुन लेती है। सहसा सभा ठहाके मार कर हंस पड़ती है। लेकिन माइक पर कानाफूसी कर रहे दोनों सम्मानीयों को कुछ क्षण पता ही नहीं चलता है कि ये ठहाके उनकी कानाफूसी का मजा ले रहे हैं। लेकिन जब सदन में ऐसा हो और उपसभापति के कान रिमोट कंट्रोल के रिसीवर की तरह कानाफूसी के सिगनल सुनें और तत्काल स्थगन हो तो हंसी उड़ेगी ही। इस कानाफूसी के पीछे सदन में सरकार को सुरक्षा कवच प्रदान करना था। इसकी जिम्मेदारी राजीव शुक्ला उठा रहे थे, लेकिन माइक ने रायता फैला दिया।
जब बात सार्वजनिक हुई तो राजीव शुक्ला जी ने कहा कि वे तो सलाह देते ही रहते हैं। उपसभापति ने सफाई पेश की कि यह तो उनका स्वतंत्र फैसला था। हो सकता है कि यह स्वतंत्र फैसला हो, लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो हजम होने में अटकती हैं। सलाह के बाद एकाएक स्थगन ऐसा ही कुछ था। पीछे सरकार की मंशा थी कि कोयला ब्लॉक आवंटन पर कैग की रिपोर्ट पर बातचीत से किसी तरह बचा जाए। अब इससे बचने के उपया पर बुधवार को भी लोक सभा और राज्य सभा की कार्यवाही नहीं चल पाई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे पर अड़े विपक्षी दलों के हंगामे के कारण लोकसभा और राज्य सभा की कार्यवाही कई बार स्थगित हुई। बाद में संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा कि सरकार कैग रिपोर्ट सहित सभी मुद्दों पर चर्चा करने को तैयार है। कैग की रिपोर्ट में कोयला ब्लॉक आवंटन में बिना बोली लगाए, दिल्ली हवाई अड्डे के विकास और बिजली परियोजना के लिए कोयला देने जैसे मामले शामिल हैं। संसदीय कार्यवाही का स्थगन आवश्यकता होने पर ही लगे तो सार्थक है। वरना कार्यवाही रोकना सत्ताधारी दलों के लिए मुद्दों से बचने का हथियार बनता जा रहा है। इस पर देश का मत जानना जरूरी है। चुने हुए प्रतिनिधि जनता के शासक नहीं, प्रतिनिधि ही हैं। उन्हें लोकतंत्र को गतिशील बनाए रखने के लिए प्रतिनिधित्व का अधिकार मिला है, न कि कानाफूसी करके लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रभावित करने का प्रतिनिधित्व दिया गया है।
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