न्यायालय ने माना है कि मानव ने वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास को बरबाद
किया है। यह समझने की आवश्यकता है कि इंसान का पर्यटन वन्यजीवों के आवास
में क्यों हो?
इं सान ने वनों को काटा। वन्य जीवों से उनका आवास और पर्यटन छीना। अपनी शहरी आपाधापी की बोरियत का भार भी पर्यटन करने के नाम पर जंगल में छोड़ने लगा। अब जब न्यायालय ने न्याय दिया है तो देश भर में हड़कंप मच गया है। यह हड़कंप इसलिए मच गया कि अब कथित सभ्य समाज जंगल की सफारी नहीं कर पाएगा। यह हड़कंप इसलिए है कि होटल बंद हो जाएंगे। यह हड़कंप इसलिए नहीं है कि जंगल सुरक्षित होंगे। बाघ को कोर एरिया के रूप में उसका राज्य वापस मिलेगा? इंसान की चिंता आज भी अपने तक ही सीमित है। न्यायालय के फैसले को व्यापकता मेें देखने समझने की जरूरत है।
अब बाघ संरक्षित क्षेत्र में पर्यटन पर तत्काल रोक लगाने संबंधी उच्चतम न्यायालय के आदेश के तुरंत बाद राज्यों में बाघ संरक्षित कोर प्रक्षेत्र प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। कोर्ट के आदेश के मद्देनजर सैलानी अब इन क्षेत्रों का लुत्फ नहीं उठा पाएंगे। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार एवं न्यायाधीश एफएम खलीफउल्ला ने अपने अंतरिम आदेश में देशभर के टाइगर रिजर्वों के कोर एरिया में संचालित पर्यटन पर तत्काल पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। यह अपीलीय याचिका सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के विरुद्ध जुलाई 2011 में दायर की गई थी। याचिकाकर्ता अजय दुबे ने प्रदेश के टाइगर रिजर्वों के कोर एरिया में संचालित पर्यटन पर रोक की मांग की थी, जिसे हाईकोर्ट की युगलपीठ ने खारिज कर दिया था। लेकिन मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण की अगली सुनवाई तक देश के सभी टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में पर्यटन पूर्णत: प्रतिबंधित करने को फैसला दिया है।
स्थानीय अतिक्रमण ने वन एवं पर्यावरण का जो बंटाढार किया है उसमें जंगल का कुछ भी सुरक्षित नहीं बचा है। वन में, वन्य जीवन तो सुरक्षित होना ही चाहिए। यह प्राकृतिक अधिकार है। इंसान अपने लिए जिस प्रकार के सुरक्षा चक्र निर्मित करता है क्या वैसे वन्य प्राणियों के लिए नहीं होना चाहिए? सवाल एक दो दिन के पर्याटन का नहीं है, न इस बात है कि मनुष्य जंगल नहीं घूम पाएगा? सवाल है कि प्राकृतिक जीवों के आवास में मनुष्य का दखल क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में संचालित पर्यटन पर प्रतिबंध लगाया है। विभिन्न राज्यों के वन विभाग भी देश के बाघ संरक्षण वाले सभी राज्यों में टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में पर्यटन पर रोक लगाने के आदेश जारी कर रहा है। पर्यटकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। टाइगर रिजर्व प्रबंधन के इस फैसले ने होटल और रिसार्ट संचालकों की नींद उड़ा दी है।
बाघों को बचाने के उपाय तेज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि बाघों के जंगल में सैरसपाटे की गतिविधियां नहीं होंगी। यह फैसला पूरे देश के लिए है। न्यायाधीशों की बेंच ने यह चेतावनी भी दी कि अदालत की कार्यवाही की अवमानना करने वाले उन राज्यों को भारी कीमत चुकानी होगी जो बाघों के जंगल को अलग नहीं करेंगे। अब हमें सबक तो सीख ही लेना चाहिए।
इं सान ने वनों को काटा। वन्य जीवों से उनका आवास और पर्यटन छीना। अपनी शहरी आपाधापी की बोरियत का भार भी पर्यटन करने के नाम पर जंगल में छोड़ने लगा। अब जब न्यायालय ने न्याय दिया है तो देश भर में हड़कंप मच गया है। यह हड़कंप इसलिए मच गया कि अब कथित सभ्य समाज जंगल की सफारी नहीं कर पाएगा। यह हड़कंप इसलिए है कि होटल बंद हो जाएंगे। यह हड़कंप इसलिए नहीं है कि जंगल सुरक्षित होंगे। बाघ को कोर एरिया के रूप में उसका राज्य वापस मिलेगा? इंसान की चिंता आज भी अपने तक ही सीमित है। न्यायालय के फैसले को व्यापकता मेें देखने समझने की जरूरत है।
अब बाघ संरक्षित क्षेत्र में पर्यटन पर तत्काल रोक लगाने संबंधी उच्चतम न्यायालय के आदेश के तुरंत बाद राज्यों में बाघ संरक्षित कोर प्रक्षेत्र प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। कोर्ट के आदेश के मद्देनजर सैलानी अब इन क्षेत्रों का लुत्फ नहीं उठा पाएंगे। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार एवं न्यायाधीश एफएम खलीफउल्ला ने अपने अंतरिम आदेश में देशभर के टाइगर रिजर्वों के कोर एरिया में संचालित पर्यटन पर तत्काल पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। यह अपीलीय याचिका सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश के विरुद्ध जुलाई 2011 में दायर की गई थी। याचिकाकर्ता अजय दुबे ने प्रदेश के टाइगर रिजर्वों के कोर एरिया में संचालित पर्यटन पर रोक की मांग की थी, जिसे हाईकोर्ट की युगलपीठ ने खारिज कर दिया था। लेकिन मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण की अगली सुनवाई तक देश के सभी टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में पर्यटन पूर्णत: प्रतिबंधित करने को फैसला दिया है।
स्थानीय अतिक्रमण ने वन एवं पर्यावरण का जो बंटाढार किया है उसमें जंगल का कुछ भी सुरक्षित नहीं बचा है। वन में, वन्य जीवन तो सुरक्षित होना ही चाहिए। यह प्राकृतिक अधिकार है। इंसान अपने लिए जिस प्रकार के सुरक्षा चक्र निर्मित करता है क्या वैसे वन्य प्राणियों के लिए नहीं होना चाहिए? सवाल एक दो दिन के पर्याटन का नहीं है, न इस बात है कि मनुष्य जंगल नहीं घूम पाएगा? सवाल है कि प्राकृतिक जीवों के आवास में मनुष्य का दखल क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में संचालित पर्यटन पर प्रतिबंध लगाया है। विभिन्न राज्यों के वन विभाग भी देश के बाघ संरक्षण वाले सभी राज्यों में टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में पर्यटन पर रोक लगाने के आदेश जारी कर रहा है। पर्यटकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। टाइगर रिजर्व प्रबंधन के इस फैसले ने होटल और रिसार्ट संचालकों की नींद उड़ा दी है।
बाघों को बचाने के उपाय तेज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि बाघों के जंगल में सैरसपाटे की गतिविधियां नहीं होंगी। यह फैसला पूरे देश के लिए है। न्यायाधीशों की बेंच ने यह चेतावनी भी दी कि अदालत की कार्यवाही की अवमानना करने वाले उन राज्यों को भारी कीमत चुकानी होगी जो बाघों के जंगल को अलग नहीं करेंगे। अब हमें सबक तो सीख ही लेना चाहिए।
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