मौसम पर आधारित किसानी और जीवन के लिए मौसम ही लाख तकलीफों को पैदा कर देता है। खास कर जब फसलें कम या अधिक बरसात के कारण खराब होने लगती हैं।
भारतीय किसान आज भी किसी भविष्यवाणी पर यकीन नहीं करता। उसका अनुमान और उसकी समझ ही उसके लिए महत्वपूर्ण रही है। आज कभी कभी किसान की बात सच साबित हो जाती है। तब मौसम कैसे बदलता है और कैसे उसके जीवन में पहले कहा गया कि जुलाई के पहले हफ्ते में मानसून उत्तर भारत में पहुंच जाएगा, बाद में बताया गया कि थोड़ी देर होगी और अब तो काफी देर हो गई है। मौसम विभाग वाले बताते रहे हैं कि पूरे देश में मानसून सक्रिय हो गया है और आने वाले दिनों में जमकर बारिश होगी। यानी एक और भविष्यवाणी। पता नहीं, इन पूर्वानुमानों से किसका भला होगा? इतना तो तय है कि खेती-किसानी का भला नहीं ही हो रहा है। जुलाई के तीन हफ्ते गुजर चुके हैं और किसान खरीफ की बोवनी में बहुत पिछड़ चुके हैं।
खाद्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार10 जुलाई तक धान की रोपाई 55.4 करोड़ हेक्टेयर में हुई है जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 16.3 फीसद कम है। मोटे अनाजों की बोवनी 21.95 लाख हेक्टेयर में हुई है जो पिछले साल से 34.6 फीसद कम है। इसी अवधि में दालों की रोपाई 14 फीसद और तिलहन की बोवनी लगभग 8 फीसद कम हुई है।
इस खतरे को कोई कैसे नजरअंदाज कर सकता है कि जब बीज डाले ही नहीं गए हैं तो वे उगेंगे कैसे? और जब बारिश है ही नहीं तो डाले गए बीज भी कैसे उगेंगे!मौसम विभाग के आकलन के मुताबिक देश भर में कोई तीस फीसद बारिश कम हुई है। बादल खाली आते हैं और लौट जाते हैं, खेत प्यासे पड़े हैं। जब बारिश दस फीसद कम हो और उसका असर देश की बीस से चालीस फीसद खेती पर पड़े तो सूखे का खतरा घोषित करना चाहिए। आज की स्थिति इससे आगे है और जुलाई की बारिश के अनुमानों ने किसानों का भरोसा छीन लिया है। मुश्किल यह है कि हम किसकी मानें- कृषिमंत्री शरद पवार की या मानसून से आते संदेशे की? पवार वर्षों से यही कह रहे हैं कि देश में खेती-किसानी अच्छी चल रही है, पैदावार बढ़ी है और हमारे गोदामों में भरे हैं। इस बार बरसात का मौसम बारिश लेकर नहीं, चिंता लेकर आया है। लेकिन शरद पवार कहते हैं कि वर्षा के लिए चिंतित होने की जरूरत नहीं है। ये जुलाई का उत्तरार्ध है। अब पानी जैसे क्षति पूर्ति करने बरस रहा है।
जुलाई मध्य तक उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा 40 प्रतिशत, दक्षिण में 28 प्रतिशत, मध्य भारत में 22 और पूर्वोत्तर में 13 प्रतिशत वर्षा कम हुई है। हमें ध्यान में रखना चाहिए कि देश के पूर्वोत्तर में ही खरीफ की फसल सबसे ज्यादा होती है। पंजाब में 71 और हरियाणा में 73 प्रतिशत कम बारिश हुई है, झारखंड में 31 प्रतिशत की कमी है। पूरे देश के 62 प्रतिशत इलाकों में औसत से कम बारिश हुई है। ताजा स्थिति यह है कि बारिश में कुछ सुधार हुआ है। लेकिन किसान के शब्दों में कहें तो यह बारिश वैसी ही है जो जीने भी नहीं देगी और मरने भी नहीं देगी। हमारी खेती-किसानी की हालत की व्याख्या गांव का सीमांत किसान ही अच्छी तरह से कर सकता है।
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