सोमवार, जून 04, 2012

अन्ना-बाबा का तप



अन्ना का आंदोलन एक पवित्र जिद है। इससे देश के लोग प्रभावित होते रहे हैं। बाबा रामदेव के शामिल होने के बाद भी आंदोलन के पास दीर्घकालीन वैचारिक आधार का अभाव बना हुआ है।



अन्ना और बाबा रामदेव नई सीखों शिक्षाओं के साथ फिर राजनीतिक तपिश बढ़ाने दिल्ली में हैं। एक दिन के इस अनशन पर कुछ नई चीजें भी देखने मिली हैं। पहली ये कि मंच से किसी नेता या भ्रष्ट नेता का नाम नहीं लिया जाएगा हालांकि अरविंद केजरीवाल ने नेताओं के नाम लिए। नाम नहीं लेने वाला सुधार आंदोलन को व्यापक आधार देने के लिए किया गया है। इससे यह लगता है कि बाबा और अन्ना की जुगलबंदी में आंदोलन करने वालों ने यह  सीख ही लिया है कि किसी नेता का नाम लेने से आंदोलन व्यक्ति केंद्रित हो जाता है और उसका आधार भी सिकुड़ता है।
भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ संसद मार्ग पर एक दिन के अनशन में बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ने अपने मतभेदों को झुठलाने की कोशिश की और आंदोलन को सशक्त बनाने-बताने का प्रयास भी किया। इस आंदोलन में अन्य पक्षों को भी मोर्चे के तरह खोला है। बाबा ने एफडीआई को ब्लैक मनी की चाबी बताया और आईपीएल पर भी सवाल उठाए। इससे लगता है कि बाबा आंदोलन को व्यापक सांस्कृतिक परिवर्तन का हिस्सा भी बनाने जा रहे हैं। दूसरी तरफ अन्ना हजारे ने कहा कि बाबा रामदेव के साथ आने से आंदोलन की ताकत बढ़ी है। काफी देर बाद टीम अन्ना सीख सकी है कि बड़े आंदोलन व्यक्तिगत नहीं होते। उनको जहां से सहयोग सहायता मिले वह स्वीकार करना चाहिए। अन्ना के आने से और बाबा के एक मंच होने से एक खास तरह का आंदोलनकारी माहौल बनाने में सफल हो सकते हैं।  इस एकता से सरकार भी दबाव में आ सकती है। मंच पर अरविंद केजरीवाल और बाबा रामदेव में मतभेद सामने आए हैं। बाबा द्वारा नाम न लेने की नसीहत देने पर केजरीवाल मंच से चले गए। यानी आंदोलन में मतभेदों को छुपाया नहीं जा सका है।
बाबा ने जो विचार व्यक्ति किए उनमें पिछली भूलों से सबक लिया दिखाई देता है, जब वे कहते हैं कि आंदोलन किसी पार्टी के खिलाफ नहीं है। आंदोलन हम क्रोध और प्रतिशोध के साथ नहीं बल्कि पूरे होश और बोध के साथ कर रहे हैं। रामदेव ने यह भी कहा कि जो लोग आरोप लगाते हैं कि योगगुरु अर्थव्यवस्था की बात कैसे कर सकता है तो वे कह रहे थे कि योग के साथ अर्थशास्त्र का भी अध्ययन किया है और योग की किताबों के साथ अर्थशास्त्र की किताबें भी लेकर चलता हूं। ये पता नहीं है कि बाबा आधुनिक अर्थशास्त्र पढ़ रहे हैं या प्राचीन।  अन्ना ने कहा कि बाबा रामदेव और उनके साथ आने से ताकत बढ़ी है। अन्ना ने रामदेव का साथ स्वीकार करके आंदोलन को टीम अन्ना की चौकड़ी से बाहर निकाल लिया है। टीम अन्ना तार्किक है लेकिन जनता के करीब नहीं पहुंच पाती। अन्ना और बाबा में भारतीय जनता से संवाद की क्षमता अधिक है। इस सब के बाद भी अभी इस आंदोलन के राजनीतिक आर्थिक वैचारिक आधारों में बहुत कमजोरी दिखाई देती है। यह आंदोलन भ्रष्टचार को तो खत्म करना चाहता है लेकिन उसके अन्य प्रभावों के अध्ययन और विश्लेषण में अभी बहुत पीछे है।


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