Paintig : Shashank, BHOPAL |
तकनीक ने कला को स्पीड दी है
इन तीनों में मूल बिंदु ये बनता है कि इन तीनों में संस्कृति का विकास हो रहा है। आठवें दसक वाली स्थितियां अब नहीं रहीं। पहले की तुलना में अब सांस्कृतिक गतिविधियों का विस्तार हुआ है। दिल्ली, भोपाल और लखनऊ-पटना को भी जोड़ लें तो हिंदी भाषी संस्कृति कभी आश्रित नहीं रही। जनपद आरा से हिंदी की अच्छी पत्रिका निकलती है तो विदिशा जैसे छोटे शहर से हिंदी के कई महत्वपूर्ण कवि आए हैं। पेंटिंग और गायक भी छोटी जगहों से आ रहे हैं। भोपाल, दिल्ली में साहित्य, रंगकर्म, संगीत ही नहीं है। ये कलाएं अब कस्बों में भी पनप रही हैं। आप देख सकते हैं अधिकांश कलाकार, साहित्यकार छोटे कस्बों से दिल्ली जा रहे हैं।
इन सभी संस्कृतिकर्मियों पर महानगरीय दबाव नहीं है। न उसका अवसाद है। यह शुभ लक्षण है। कहें कि इसमें मीडिया का योगदान भी है, तब यह और मौजूं हो जाता है। इसलिए आप देखेंगे कि आने वाले कुछ वर्षो में हिंदी भाषी क्षेत्र का चेहरा बदल जाएगा।
*कला और संस्कृति के रूप किस प्रकार बदल रहे हैं? नई तकनीक, शहरी व्यस्तता, जीवन में फुरसत की कमी जैसी स्थितियों के बीच कला कौन से आकार ग्रहण करेगी?
कला संस्कृति के रूप आधुनिक तकनीक के समर्थन के कारण बदल रहे हैं। तकनीक ने इसमें बहुत बदलाव किए हैं। नाटकों में, शास्त्रीय नृत्यों में, संगीत में तकनीक का बहुत इस्तेमाल होने लगा है। अधिकांश अब प्री रिकॉर्डिड किया जाता है। उपकरणों का महत्व बढ़ गया है। लेजर, फोम और फोग का प्रयोग तकनीक का हिस्सा हैं। ये हम अपने यहां देख सकते हैं। अच्छे बुरे में नहीं बल्कि नवाचार की तरह। कई नई चीजें आ रही हैं। कभी जो काम महीने भर में हो रहा था वह अब एक दिन में हो जाता है। सेट निर्माण के लिए अगर किसी कलाकृति के लिए या मंदिर के लिए हम पेंटर को नहीं बुलाते। गूगल की ओर जाते हैं। वहां से मंदिर का चित्र निकालते हैं और उसी दिन फ्लेक्स निकलवाते हैं। इस तरह तकनीक ने पूरी प्रक्रिया बदल दी है।
*नई तकनीक को आप अपनी पेंटिंग में इस्तेमाल कर रहे हैं?
पेंटिंग में डिजीटल का प्रयोग बढ़ रहा है। मैंने भी कई पेंटिंग डिजिटल स्केनिंग के माध्यम से तैयार की हैं। इस पर लोगों ने आपत्ति भी दर्ज की है। मेरा कहना है कि जो एचिंग की जाती थी वह भी तो यही है। एचिंग भी डिजिटल है। तकनीक ने कला को स्पीड दी है। तीव्रता दी है। चीजें बदलेंगी। थर्ड डायमेंशन दिया है। अब आगे हाई डेफिनेशन में आपको और अच्छा करना होगा। वहां घटिया चीजो ंको आप इस्तेमाल नहीं कर सकते। हाई डेफिनेशन ने गुणवत्ता की परिभाषा भी बदल दी है।
वर्तमान में प्रिंटिंग में तकनीक को पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। फांट साइज को हम जिस तरह से बदल सकते हैं, उसका इस्तेमाल कहां है? पढ़ने की सुविधा के हिसाब से चीजों को प्रस्तुत होना चाहिए। इसी तरह हाई स्पीड बाईक आई है। वह आपका परफॉर्म भी मांगेगी। अगर आप परफॉर्म नहीं कर सके तो आप गिर जाएंगे। सभी तरफ चीजों के रूपाकार बदल रहे हैं। हमें उनके साथ योजना बना कर चलना होगा।
* पाठक और प्रकाशन के संदर्भ में बात करें तो वर्तमान में हिंदी साहित्य की स्थिति क्या है?
हिंदी में प्रकाशन बढ़ा है। 10 सालों में साहित्य की पत्रिकाओं का आकलन करें तो 40 गुणा बढ़ोतरी हुई है। लेकिन पाठक बनाने का जो अभ्यास हमारे यहां है, वह नहीं है। हम पाठक नहीं बना पा रहे हैं। इसमें एक और स्थिति आ रही है। अब पुस्तकों की पाठ की समयावधि कम हो रही है। कविता 3 माह, उपन्यास 6 माह की हो रही है। जब प्रोडक्शन ज्यादा होगा तो आदर्श नहीं बचेगा। इसलिए पिछले दस सालों में मध्यप्रदेश में चार कवि बड़े नहीं हैं। भीड़ अधिक है। यह सब मास प्रोडक्शन के कारण हुआ है।
*साहित्य संगठनों की भूमिका अब क्या है? वे बिखराव और ठहराव का शिकार हो रहे हैं। सक्रियता कम हुई है?
अब यह तो महसूस हो रहा है कि सबको एक हो जाना चाहिए। लेकिन वे एक होने से झिझक रहे हैं। इस झिझक को तोड़ना होगा। व्यवहारिक दृष्टिकोण से युवा लेखकों कलाकारों को मानवीयता के नए पाठ को इन सबमें जोड़ना होगा।
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