धीमे जहर पर प्रतिबंध ऐतिहासिक फैसला
तंबाखू से जुड़े उत्पादों की सहज उपलब्धि से समाज में प्रतिरोध कम हो जाता है। प्रतिबंध के बाद इस पर नियंत्रण आसान होगा।
मध्यप्रदेश सरकार ने 1 अप्रैल से गुटखा पाउच बंद करने का एतिहासिक फैसला लिया है। प्रदेश में होने वाले कुल मुंह के कैंसर में 91 प्रतिशत कैंसर तंबाखू के सेवन से होते हैं। यह फैसला स्वागत योग्य है और सरकार के वास्तविक कर्तव्य का अनुपालन भी है। किसी भी लोककल्याणकारी राज्य के लिए अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना ही चाहिए। मध्यप्रदेश ने यह कदम उठाकर बड़ी पहल की है। अब डर इस बात का है कि गुटखा खाने वाले और बेचने वाले इस प्रतिबंध को प्रभावहीन बनाने में पूरा जोर लगाएंगे। वे नहीं चाहेंगे कि करोड़ों रूपए की आया देने वाला यह उद्योग बंद हो जाए। हो सकता है कि कुछ दिनों तक गुटखा पाउच चोरी छिपे या कालाबाजारी के तहत बिकें लेकिन इसके प्रभाव दूरगामी होंगे। फिलहाल हालत ये है कि 7 साल के कई बच्चों को गुटखे पाउच खाते देखा जा सकता है। जब कोई चीज बच्चों तक पहुंचती है तो उसके असर बेहद विनाशकारी ही होते हैं। आने वाले समय में गुटखा चबाने की प्रवृत्ति इसकी सहज उपलब्धता के कारण बेहद चिंता जनक तरीके से फैल रही थी। तंबाखू से जुड़े उत्पादों की सहज उपलब्धि से समाज में प्रतिरोध कम हो जाता है। प्रतिबंध के बाद इस पर नियंत्रण आसान होगा। समाज में भी सजगता बढ़ेगी। मध्यप्रदेश सरकार इस कठोर निर्णय लेने के लिए बधाई की पात्र है।
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गरीबी की धुंध में धनुष
भारतीय तीरंदाजी में अपनी चमक बिखेरने वाली और देश के लिए कई मेडल जीत चुकीं झारखंड की 21 साल की निशा रानी को गरीबी से तंग आकर अपना धनुष बेचना पड़ा। जमशेदपुर जिले के पथमादा गांव की निशा की कहानी सैंकड़ों खिलाड़ियों की तरह है जो गरीबी की धुंध में खो गए। निशा 2006 में वह ओवरआॅल सिक्किम चैंपियन बनीं। झारखंड में हुई साउथ एशियन चैंपियनशिप में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। 2006 में बैंकाक में हुई ग्रां प्री चैंपियनशिप में ब्रांज मेडल जीतने वालीं निशा भारतीय टीम की मेम्बर रहीं। 2007 में ताइवान में हुई एशियन ग्रां प्री में उन्हें बेस्ट प्लेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। भारतीय तीरंदाजी फेडरेशन और इंडियन ओलिंपिक एसोसिएशन उनके बारे में एक बार भी सोचता तो निशा इतना मजबूर नहीं होना पड़ता। एक धनुर्धर को अपना कीमती धनुष बेचना कितना तकलीफदेह हो सकता है इसकी कल्पना की जा सकती है। निशा रानी ने चार लाख रुपए का कमान मणिपुर की खिलाड़ी को 50 हजार रुपए में बेच दिया। ऐसा लगता है कि देश सिर्फ क्रिकेट को ही जानता है। इसमें सरकारों और खेल संगठनों की लापरवाही उजागर होती है। वे खेलों को लोकप्रियता से तौल कर देखते हैं। खेल एक संस्कृति है। जिम्मेदारों को हर खेल और उसके खिलाड़ी को बराबर महत्व देना चाहिए।
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