विदेशी निवेश बढ़ने से निश्चय ही भारतीय खुदरा बाजार का रंग-रोगन बदलेगा। हम उपभोग के नए युग में प्रवेश करेंगे।
वि देशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई मंत्रीमंडल की बैठक में मंजूरी दे दी है। अब इस मामले को लेकर चल रही हायतौबा कुछ दिन और चलेगी। सरकार ने जो फैसला लेना था वह ले लिया है। आलोचकों के पास अब हायतौबा ही हाथ में रहेगी। मीडिया में जिस तरह की सरलीकृत खबरें आ रही हैं, उनका भी अध्ययन जरूरी है। कहा जा रहा है कि एफडीआई से भारत का 29.5 लाख करोड़ के खुदरा कारोबार बरबाद हो जाएगा। बताया जा रहा है कि इससे 22 करोड़ लोग बेरोजगार हो जाएंगे। लेकिन इस पूरे मामले में तहकीकात करें तो कई चीजÞें ऐसी भी हैं जिससे रोजगार के अवसरों बढ़ोतरी होगी। किसी भी पक्ष के नकारात्मक पहलू देखने से अच्छा है कि उसके दूरगामी परिणामों को भी ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में केंद्र सरकार ने बहुत सावधानी बरती है। जैसे कि कंपनी को कम से कम 10 करोड़ डॉलर यानी लगभग 500 करोड़ रुपए का निवेश अनिवार्य होगा। इस में 25 प्रतिशत निवेश संबंधित कंपनी को शीतगृहों, प्रसंस्करण और पैकेजिंग उद्योग पर खर्च करना होगा। इसके अलावा 30 प्रतिशत प्रसंस्कृत उत्पाद कंपनियों को लघु इकाइयों से खरीदना होंगे। इन स्टोरों में अनाज दालें, मछली पोल्ट्री आदि उत्पादों को बिना ब्रांड के बेचा जा सकेगा। निवेश बढ़ने से निश्चय ही भारतीय खुदरा बाजार का रंग-रोगन बदलेगा। हम उपभोग के नए युग में प्रवेश करेंगे। अभी नकारात्मक या सकारात्मक किसी पक्ष की वकालत संभव नहीं।
पक्षद्रोही मंत्री
किसी विभाग का मंत्री होना एक प्रादेशिक और जनसामान्य के प्रति बड़ी जिम्मेदारी है
म ध्यप्रदेश सरकार में पीएचई मंत्री गौरीशंकर बिसेन अपने विभाग के कामों से कम तुगलकी क्रिया कलापों से अधिक जाने जा रहे हैं। कभी वे जाति सूचकटिप्पणी कर विवाद में आते हैं तो कभी पटवारी को सार्वजनिक स्थान पर उठक-बैठक लगवाते हैं। वे जिस इंजीनियर को निलंबित करते हैं वही उनको पांच लाख रिश्वत देने बंगले पर पहुंच जाता है। गुरुवार को उनके ही द्वारा निलंबित इंजीनियर को वे अदालत में पहचानने से इंकार कर देते हैं। निलंबन की यह घटना 2009 की है। इसकी थाने में रिर्पोट दर्ज कराई जाती है। मामला अदालत में गया और जब गुरुवार को आरोपी को पहचानने की बात आई तो मंत्री मुकरे ही नहीं ऐसी घटना के होने से ही इंकार कर दिया। घटना से मुकरने पर अदालत द्वारा गवाहों को पक्षद्रोही घोषित कर दिया। मंत्री पद पर बैठे जनप्रतिनिधि के लिए ऐसे घटनाक्रम जनता में उनके प्रति हिकारत की स्थितियों को जन्म देते हैं। ये विवाद जनता में मंत्री की छवि को बहुत हलकी बना देते हैं और कई लतीफों को जन्म देते हैं। किसी विभाग का मंत्री होना एक प्रादेशिक और जनसामान्य के प्रति बड़ी जिम्मेदारी है और इस तरह की घटनाएं एक मंत्रीपद के स्तर को शर्मनाक बना देती हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें