वृद्धाश्रमों की संख्या लगातार बढ़ना, वृद्धों के प्रति सम्मानपूर्ण संवेदनशीलता का परिचायक नहीं है।
अं तरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर वृद्धों का सम्मान किया गया। वृद्धों के प्रति सम्मान भारतीयता पहचान है। लेकिन बदलते भारतीय समाज में जिस प्रकार वृद्धों के लिए ओल्ड ऐज होम यानी वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ रही है, यह स्थिति वृद्धों के सम्मानपूर्ण संवेदनशीलता को प्रदर्शित नहीं करती। केंद्र सरकार द्वारा पूरे देश में 663 वृद्धाश्रम संचालित किए जाते हैं। इनमें राज्यों या उनकी सहायता से संचालित आश्रम शामिल नहीं हैं। इनमें एक लाख से अधिक असहाय वृद्ध लाभान्वित हो रहे हैं। देश में 8 करोड़ 86 लाख वृद्ध हैं। 30 प्रतिशत गरीबी रेखा में जीवनयापन करते हैं। इनमें 1 करोड़ 90 लाख महिलाएं सामाजिक और आर्थिक रूप से असुरक्षित जीवनयापन कर रही हैं। वृद्धों की आवश्यकताओं के लिए हमारा समाज असंवेदनशील होता जा रहा है। कालोनियों में वृद्धों के लिए ‘स्पेस’ नहीं हैं। घरों के नक्शों में खुले बरामदे कम होते जा रहे हैं। वृद्धों के बैठने और उनके समय व्यतीत करने के लिए समाज में कोई चिंता नहीं की जाती। भारतीय समाज में एकल परिवार उनके लिए वैकल्पिक जगह के रूप में वृद्धाश्रम के बारे में सोचने लगे हैं, यह वृद्धों के प्रति असामाजिक नजरिया है।
वृद्धाश्रम अब जेल या एकांतवास का प्रतीक नहीं रहे। वहां त्यौहार, संगीत, कीर्तन और व्यक्तिगत रुचि के अनुरूप व्यवस्थाएं हैं।
वृ द्धाश्रम बदलते भारतीय समाज की जरूरतें हैं। परिवार से दूर रह कर नौकरी करते पति-पत्नी, समय की कमी, आर्थिक मजबूरियां, बड़े शहरों में एक या दो कमरों के घरों रहने की मजबूरी के कारण बढ़े बुजुर्गों के रहने की भारतीयों की पारिवारिक परंपरा की आवश्यकता नहीं है। कभी बच्चे मां बाप से पंद्रह साल तक की उम्र तक साथ होते थे लेकिन आज वे बहुत कम से उम्र में आवासीय स्कूलों में अपना बचपन गुजार रहे हैं। यह समाज की व्यवस्था है। इसमें बच्चों के प्रति असंवेदनशीलता नहीं है। इसी तरह बुजुर्गों को पेड-ओल्ड ऐज होम में सुविधाओं के साथ खुशी खुशी रहना स्वीकार करना चाहिए। नए वृद्धाश्रम बुजुर्गों की सुविधानुसार बनाए जाते हैं। वृद्धाश्रम अब जेल या एकांतवास का प्रतीक नहीं रहे। वहां त्यौहार, संगीत, संक्रीर्तन और व्यक्तिगत रुचि के अनुरूप व्यवस्थाएं हैं। तेजी से बदलती सामाजिक व्यवस्थाओं में वृद्धाश्रम एक यर्थाथ हैं। ये हमारे सामाजिक जीवन का हिस्सा हैं। वृद्धों के लिए उनमें रहना सजा नहीं नए जीवन का आगाज है।
प रिस्थितियों के अनुरूप सामाजिक जीवन बदलते रहे हैं। वृद्धाश्रम वर्तमान समाज के यथार्थ बन चुके हैं। वृद्धों के कल्याण के लिए राज्य की भूमिका महत्वपूर्ण है और संविधान में भी राज्य की लोककल्याणकारी अवधारणा का उल्लेख है। सरकारों को जीवन के इस चरण को अपनी मर्जी और सुविधा से गुजारने में वृद्धों के सहयोग के लिए आगे आना चाहिए। आज 30 प्रतिशत वृद्ध असुरक्षित सामाजिक आर्थिक स्थितियों में जीवनयापन कर रहे हैं। ऐसे में राज्य की भूमिका बढ़ जाती है।
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