इस कानून में 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के बीच आपसी सहमति से सेक्स संबंध आपराधिक नहीं होंगे।
बा ल सुरक्षा विधेयक-2011 का ड्राफ्ट चर्चा में है। बच्चों के अधिकारों और उनके यौन शोषण के खिलाफ एक समग्र कानून ड्रॉफ्ट किया गया है। इस कानून में यौन अपराधों को दो वर्गों में बांटा गया है। किशोर वर्ग के यौन-सबंध और बच्चों की सुरक्षा में लगे अधिकारियों जैसे पुलिस, शिक्षक, प्राचार्य, हॉस्टल वार्डन, परिवार तथा रिश्तेदार आदि द्वारा शारीरिक शोषण जिसे जघन्य अपराध माना गया है। इस अपराध की सजा आजीवन है। यह कानून जीवन के सामाजिक बदलावों को स्वीकार करता है क्योंकि समृद्ध जीवन शैली के कारण किशोरों की शारीरिक परिवर्तन की उम्र कम हो गई है। डॉक्टरों के अनुसार आजादी के समय रजस्वाला होने की उम्र 12-13 वर्ष थी जो अब 9-11 हो गई है। टीवी फिल्म और अन्य दृश्य श्रृव्य माध्यमों के कारण बच्चों में सेक्स के प्रति जिज्ञासा बढ़ रही है। समाज में 14 से 18 वर्ष के किशोरों के बीच सेक्स संबंधों में वृद्धि हुई है। इस कानून में 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के बीच आपसी सहमति से सेक्स संबंध आपराधिक नहीं माने जाएंगे। उन पर कोई सजा लागू नहीं होगी। यह एक प्रकार से बच्चों को अपराध बोध से मुक्त रखने का प्रयास है।
इन प्रावधानों से लड़कियों की बदनामी को शह मिलेगी और इससे सामाजिक आचार विचार ध्वस्त हो जाएंगे।
अ भी तक 18 साल तक के किशोरों को सेक्स संबंधों पर साधारण कानून था। जिसके तहत बच्चों पर आइपीसी की धाराओं में रेप का केस दर्ज होता था। बाल सुरक्षा कानून के ड्राफ्ट में इसको बदला गया है। इस बदलाव के लिए लाए गए दो प्रावधानों पर समाज को आपत्ति है। पहला 14 से 16 वर्ष तक के बच्चों में नॉन पेनीट्रेटिव सेक्स को जायज माना गया है। 16 से 18 वर्ष तक के बच्चों के बीच सहमति से पेनीटेÑटिव सेक्स संबंधों को कानूनी अनुमति होगी। समाज के एक तबके का कहना है कि इंटरनेट, टीवी और फिल्मों से किशोरों में पहले से ही इस संबंध में जानकारियां हैं। अगर कानूनी अनुमति मिलती है तो किशोर उन्मुक्त हो जाएंगे। भारतीय समाज अभी तक ऐसे परिवर्तनों के लिए तैयार नहीं है। यहां कौमार्य को अभी भी महत्व दिया जाता है। इस कानून से लड़कियों की बदनामी को शह मिलेगी और सामाजिक आचार ध्वस्त हो जाएंगे। दूसरा मुद्दा है कि 18 साल तक के किशोर की सेक्स संबंधों के प्रति मूल भावना क्या है? इस कानून में इसका उल्लेख नहीं है।
कि सी भी समाज की स्थितियों, समस्याओं और स्थापनाओं के साथ शोषण और दमन को खत्म करने के लिए केवल कानून ही पर्याप्त नहीं होते। मानवीय समाज में नियम कानूनों के साथ उनके प्रति जागरूकता होना आवश्यक है। समाज को नियमों में बांधने से पूर्व उसका सामाजिक सांस्कृतिक अध्ययन जरूरी हैं। भारतीय समाज परिवर्तन स्वीकार करता है लेकिन पहले सांस्कृतिक-सामाजिक तार्किता पर भी कसता है।
पीपुल्स समाचार में प्रकाशित
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