सोमवार, सितंबर 19, 2011

गांधी के उपवास में मोदी की घुसपैठ


अप्रैल 2011 में क्रिकेट टीम विश्व कप लेकर आई थी तब हर खिलाड़ी को एक करोड़ रुपए की राशि दी गई थी।


ए शिया कप विजेता हॉकी खिलाड़ियों को मात्र 25-25 हजार देकर हाकी संघ ने मजाक बनाया था। बाद में हॉकी खिलाड़ियों की तीखी प्रतिक्रिया से घबड़ा कर मामला संभाल लिया गया और सम्मान की राशि बढ़ा दी गई। हॉकी खिलाड़ियों की प्रतिक्रिया सही थी। अप्रैल 2011 में क्रिकेट टीम विश्व कप लेकर आई थी तब हर खिलाड़ी को एक करोड़ रुपए की राशि दी गई थी। लगता है जेंटलमैनों के खेल क्रिकेट ने भारतीयों को पागल बना दिया था। क्रिकेट एक जमाने में अभिजात्य वर्ग का खेल होता था। गुलामी के दौर में जमींदार, बड़े कास्तकार, नवाब, दलाल, व्यापारी आदि बड़े लोग क्रिकेट खेलते थे। आजादी के बाद नजारा बदल गया। क्रिकेट गली गली में खेला जाने लगा। हर भारतीय लगान का क्रिकेटर बन गया। दिन हो या रात हमारे शहरों की गलियां क्रिकेट के बुखार से भरी रहती हैं। क्रिकेट ने महत्वपूर्ण काम किया है। उसने संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांध दिया है। भारतीय क्रिकेट के पीछे अपना सब कुछ छोड़ सकते हैं। भारतीयों की क्रिकेट दीवानगी के लिए एक और कहावत चली है कि क्रिकेट भारतीयों का खेल है, अंग्रेजों से केवल खेलना सीखा है। यही कारण आज बच्चा बच्चा गली गली में लगान क्रिकेट खेल रहा है।
दूसरा पहलू
क्रि क्रेट खेलने, जीतने और हारने के मामले में हमारी आदत क्रिकेट मैनिया की तरह हो चुकी है। क्रिकेट के अलावा देश को, देश के नेताओं को दूसरे खेल दिखाई ही नहीं देते। हॉकी और फुटबाल देश के किस कोने में खेले जाते हैं, खेल मंत्री और मंत्रालय के लोग ही जानते होंगे। एकमात्र क्रिकेट के कारण हमने ओलिंपिक और दूसरी विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं के लिए इन्हें उपेक्षित कर दिया। जिन  ओलिंपिक  खेलों में कभी हम विश्व विजेता रहे आज उनका कोई नाम नहीं लेता। भारत ने हॉकी में 1928 से 1956 तक 6 ओलिंपिक विश्वकप लगातार जीते थे। आज हॉकी के इस इतिहास का कोई नाम लेवा नहीं है। तैराकी,  ऊंचीकूद, जिमनास्टिक,दौड़ जैसे खेलों में हम गिनती लायक ओलिंपिक पदक नहीं जीत सके। खेलों के प्रति हमारे खेल मंत्रालय, संगठनों और नेताओं बनाई नीतियां अदूरदर्शी और गैरजिम्मेदार हैं। भारतीयों ने जो भी ओलिंपिक जीते हैं वे खिलाड़ियों के अपने निजी प्रयास अधिक रहे हैं। हॉकी टीम को पर्याप्त महत्व, सम्मान और प्रोत्साहन इस समय जरूरी है।

को ई भी खेल अपनी खेल भावना से महत्वपूर्ण होता है। खेलों को रुतबे का प्रतीक नहीं बनाया जा सकता। गांव कस्बों में खेल खासकर क्रिकेट खेल संगठन इसी रुतबे का नाम हैं। खेल संगठनों जिम्मेदार व्यक्ति को खेल के प्रति अपनी हार्दिकता से काम करना चाहिए। सभी खेल महत्वपूर्ण हैं और विकास के लिए सभी खेलों को खेल-भावना के अनुसार प्रोत्साहित करने की नीति का पालन जरूरी हो गया है।

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