रविवार, फ़रवरी 20, 2011

इश्क में दर्द होता है दोस्ती में सुकून


 
Source: bhaskar   
 
 
 
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कमरे में फैज बैठे हुए थे। मैंने फैज की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए उनके हाथ की गरिमा मांगी। कहा, ‘कोई बात करो ताकि गुलशन का कारोबार चले.।’ फैज ने दिल की सारी गरिमा आंखों में डाल ली और कहा, ‘हां करो बातें।’ मैंने कहा, ‘शायर को एक दुनिया बनी-बनाई मिलती है, एक दुनिया वह खुद बनाता है। दिल में परीखाना भी बनाता है, वतन की गलियों पर निसार भी होता है। दुख-दर्द के अर्थ जानता है। आपकी जिंदगी का शायद यही सफरनामा है - कूए यार से सूए दार तक।’

‘हां, यही सफरनामा है,’ फैज ने हाथ की सिगरेट बुझाकर नई सुलगा ली और कहा, ‘एक जेहनी दुनिया भी बनाई और शेर लिखने लगा।’

‘सो उर्दू आपका पहला इश्क था, अब कुछ बरसों से आप पंजाबी में भी नज्म कहने लगे हैं.।’

‘कानों में शुरू से पंजाबी गीतों की आवाजें पड़ती रहती थीं। पहली बड़ी जंग के दिनों में लोग गलियों में गाते रहते थे। तब के जो बोल छाती में बैठे हुए थे, वे कई मैंने अपनी ताजा नज्मों में उतारे हैं।’

‘उस वक्त का एक गाना होता था - तेरे मुखड़े ते काला-काला तिल वे, मेरा कढ़ के ले ग्यों दिल वे, वे मुंडिया सयालकोटिया.! यह कहीं आपके बारे में तो नहीं था?’ फैज हंस पड़े। कहने लगे, ‘मैं हूं तो सयालकोटिया, पर बाप की जागीरें सरगोधे में थीं। वहीं हीर सुनी थी या बुल्ले शाह की काफियां, सोहनी-महिवाल और मिरजा साहिबां.। ’

‘तब पंजाबी में लिखने का जी नहीं किया?’

‘किया था, पर हिम्मत नहीं पड़ी।’

‘अच्छा बगैर नाम उसकी बात सुनाओ जिसके नाम सारे गम लिख दिए.।’
फैज खुलकर हंस पड़े। कहने लगे, ‘एक होती थी कलोपित्रा. उससे लेकर तेरे तक लोग होते हैं, जिनके नाम दुनिया के गम लिख दिए जाते हैं।’ उन्होंने मेरे सवाल और अपने जवाब को हंसी के बहते पानी में छोड़ दिया था।

टेलीविजन वाले अपनी तेज रोशनी समेट कर चले गए। मैंने डूबते सूरज की लालिमा से भरे आकाश की ओर खिड़कियां खोल दीं। मेज पर चाय के प्याले समेटकर मैंने गिलास रखे। तब फैज ने पानी में बहते जाते मेरे सवाल को पकड़कर कहा, ‘ले अब तुझे बताऊं, मैंने पहला इश्क अठराह बरस की उम्र में किया। नक्शे-फरियादी की सारी नज्में मैंने उसके इश्क में लिखी थीं।’

‘मगर उसको जिंदगी में हासिल क्यों नहीं किया?’

‘हिम्मत कहां होती थी उस वक्त जबान खोलने की। उसका निकाह किसी बड़े जागीदार से हो गया। फिर दूसरा इश्क मैंने उसके दस बरस बाद किया - एलिस से।’

‘जो अब आपकी बीवी हैं?’

‘हां , मैं सोचता हूं अच्छा ही किया। जिंदगी के जैसे उतार-चढ़ाव से मैं गुजरा, जेलों में रहा, एलिस की जगह कोई और औरत होती तो उन हालात से नहीं गुजर सकती थी।’ मैंने पूछा, ‘फिर..?’ ‘फिर एक वाकफी हुई थी छोटी-सी उम्र की लड़की से। वह मुझे बच्ची-सी लगती थी।

अचानक लगा कि वह बच्ची तो बड़ी हस्सास और जवान औरत है। मैंने फिर इश्क की गहराई देखी। उसने किसी बड़े ऑफीसर के साथ निकाह कर लिया। दर्द से घबरा गई थी शायद।’

‘फिर.?’ वे बोले, ‘जेल में मुझे अस्पताल भेजा गया। वहां एक डॉक्टर होती थी, जिसने मुझसे बेपनाह इश्क किया।

‘एलिस को इस इश्क का पता है?’

‘हां, वह मेरी बीवी नहीं, दोस्त है। इसीलिए जिंदगी अच्छी गुजर गई। इश्क में दर्द होता है, दोस्ती में सुकून होता है। अब फैसला कर लिया है कि इश्क नहीं, दोस्ती करूंगा।’

(अनुवाद और प्रस्तुति: सुरजीत)

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