बुधवार, जून 09, 2010
लोकल में ही ग्लोबल की संभावनाएं हैं
देवीलाल पाटीदार से रवीन्द्र स्वपिल प्रजापति की बातचीत
सिरेमिक आर्टिस्ट और चित्रकार देवीलाल पाटीदार कला को ऐसा माध्यम मानते हैं जो व्यक्ति की आंतरिक विचारों-भावनाओं को रूपों और आकारों में अभिव्यक्त करती है। फिर वह चाहे पेंटिंग हो या फिर शिल्प और सिरेमिक। सभी कलाएं माध्यम हैं जो इंसान को प्रकृति को, उसके प्राकृतिक होने को बताती हैं। हाल ही में उन्होंने कुछ कलाकारों के साथ मिल कर आर्ट2020 डॉट काम लांच की है।
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सिरेमिक में क्या नया हो रहा है?
दरअसल कला को नया ही होना होता है। कला प्रतिदिन का जन्म है। कला ही नहीं जन्म लेती, कलाकार भी नया जन्म लेता है। इसका कारण है। नया वही रच सकता है, वही कर सकता है जो जन्म लेता है। कलाकार नया करता है, क्योंकि उसकी कला रोज नई होती है। प्रकृति के रिश्ते की तरह है ये। मां सिर्फ अपने बच्चे को जन्म नहीं देती वह खुद भी नया जन्म गृहण करती है। तो कलाकार भी नया कर रहे हैं। सिरेमिक में नए प्रयोग हो रहे हैं। नए आकार आ रहे हैं। कल्पनाशीलता का नया संसार सिरेमिक में सामने आ रहा है।
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भोपाल में किसी समय भारत भवन अंतरराष्ट्रीय मंच था, कुछ मायनों में आज भी है। आप इस संदर्भ में अपनी क्या भूमिका देखते हैं?
भारत भवन आज भी अंतरराष्ट्रीय महत्व बनाए हुए है। इसमें यह अवश्य देखना पड़ेगा कि जिस समय भारत भवन का प्रारंभ हुआ था, तब यह देश का एक यूनिक स्थान था। नए उभरते और स्थापित दोनों तरह के कलाकार यहां आते थे, वह आज भी आ रहे हैं। कुछ चीजो में फर्क आया है तो उनका असर हम सब को दिख रहा है।
व्यक्तिगत रूप से मेरी भूमिका इसमें एक कलाकार की हैै। मैं चाहता हूं कि नया निर्माण हो, नया सृजन हो, यही चीज भारत भवन को स्थापित करेगी।
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आजकल कला और इंटरनेट आपस में मिल कर ग्लोबल हो रहे हैं। आपने हाल ही में भोपाल के कलाकारों को लेकर किसी वेबसाइट लांच की है?
लोकल ही ग्लोबल होता है। वास्तविक रूप से लोकल होने का मतबल ही है कि आप इस ग्लोबल में यूनिक हैं। ग्लोबल का मतलब है एक जैसा होना नहीं है। आजकल
सबसे अधिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोक कलाओं की चाह बड़ी है। इसका क्या कारण हो सकता है? इसका कारण है कि दुनिया के कलाप्रेमी कुछ यूनिक देखना देखना चाहते हैं। यह यूनिक उन्हें लोक कलाआें में दिखाई देता है। आदिवासियों की कलाओं में दिखाई देता है। जहां भी यूनिक दिखाई देगा, उसका संसार स्वागत करेगा। आज अधिकांश लोक कला इंटरनेट के सहारे से विश्व मंच पर जा रही है।
भोपाल के कलाकारों के लिए जिस वेबसाइट की बात आपने की है, वह कुछ कलाकारों का व्यक्तिगत स्तर पर सामूहिक प्रयास है। इसमें मैं भी जुड़ा हूं।
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इसके उददेश्य क्या हैं?
इस साइट का उद्देश्य है कि हम भोपाल के कलाकारों को विश्व स्तर पर प्रस्तुत करें। यह साइट जहां तक जा सकती है जाएगी। नेट ही इसका सहारा है। यह नए लोगों को प्रस्तुत करने के साथ, कला पर आधारित विचार विमर्श, बहस और संवाद को भी अपने उद्देश्यों को शामिल करेगी। साइट अस्तित्व में आ चुकी है।
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कला की दुनिया में आप नए और पुराने लोगों का साथ पाया है। आज युवा और बिलकुल नए लोगों को लेकर आप क्या सोचते हैं। ऊर्जा है नए बच्चों में?
नए बच्चों में ऊर्जा है इससे इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन कला के लिए जिस धैर्य की आवश्यकता होती है, वह नहीं है। इसके पीछे ये हो सकता है कि नए बच्चों को जो माहौल हम दे रहे हैं, वह कैरियर की तरफ केंद्रित है। कैरियर आवश्क है लेकिन वह कला पर हावी होगा, तो कला व्यवसाय हो जाएगी, कला नहीं होगी। उसका सौंदर्य खो जाएगा। उसका कला होना नहीं बचेगा।
पुराने लोगों में भी ऐसा था पर मात्रा के हिसाब से कम था। आज अधिक है। कुछ बच्चों में निकलता है धैर्य, वे ही नया करते हैं। वे ही आगे की लंबी यात्रा कर सकते हैं।
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सिरेमिक कलाकार के लिए क्या आवश्यक है?
कला में धैर्य जैसी चीज तो ऊपर बताई है। दूसरी बात सिरेमिक में आवश्यक है कि आप संसार को किस नजर से देखते हैं, किस रूप में देखते हैं। संसार से क्या रिश्ता बनाते हैं। जो संबंध होगा वही आपकी कला में आएगा। यह हर कलाकार की अलग अनुभूति की तरह है। इसे अपने ही अंदर खोजना पड़ता है। कोई तय मापदंड नहीं हैं।
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