बुधवार, अप्रैल 21, 2010
काश! पहले ही सच्चाई स्वीकार लेते
पहले हंसी में उड़ाया था अब स्वीकारा कि यूका के आसपास की जमीन में अभी भी जहर है।
गै स त्रासदी का दंश झेल चुकी भोपाल की मिट्टी आज भी उसके दुष्प्रभाव से मुक्त नहीं हुई है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश जब भोपाल दौरे पर आए थे तो यूनियन कार्बाइड परिसर के दौरे के समय जमीन के प्रदूषण की बात उठने पर उन्होंने हंसी उड़ाते परिसर की मिट्टी को उठाते हुए कहा था- देखो कहां है प्रदूषण, मेरे हाथ तो नहीं गले। उन्हीं ने सोमवार को राज्यसभा में यह सच्चाई स्वीकारी कि यूनियन कार्बाइड के आसपास की जमीन और जल में अभी भी जहर है। जयराम रमेश का एक मंत्री के रूप में चीजों को इतने हलके रूप में लेना तब भी उन्हें शोभा नहीं दे रहा था और आज उनका तरीका उन्हें ही चिढ़ा रहा है। आखिर केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड और सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट(सीएसई) की रिपोर्ट में आए निष्कर्षों को सरकार को स्वीकार करना पड़ा? उन्हें समझना चाहिए था कि यह एक ऐसा मामला था जिसमें हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, इसलिए इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए था। समस्या को इतने हल्के से लेने वाले सिर्फ जयराम रमेश ही अकेले नहीं हैं, मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री और भोपाल के नुमाइंदे बाबूलाल गौर ने भी कहा था कि अगर जहर होता, तो वहां के चूहे-बिल्ली मर जाते। हम अपने नेताओं पर कितना आश्चर्य करें कि वे कैसे अति सूक्ष्म रासायनिक अणुओं से होने वाले प्रदूषण के असर की तुलना चूहा-बिल्ली के मरने से कर रहे हैं। अब जांच में पाया गया है कि यूनियन कार्बाइड के आसपास पांच वर्ग किलोमीटर में भूजल एवं जमीन प्रदूषित हो चुकी है। इतना ही नहीं सरकार ने खुद यह स्वीकार किया है कि इस क्षेत्र के हैंडपंपों के पानी में पारा और आर्सेनिक जैसे जहरीले धातुकण उपस्थित हैं। इस समय कार्बाइड परिसर के 67 एकड़ में फैला 8000 मीट्रिक टन रासायनिक कचरा जमीन में रिस कर प्रदूषण को चिर स्थाई रूप दे रहा है। सरकार सिर्फ 300 मीट्रिक टन कचरे के ही निबटान के लिए तैयार है। अगर सरकार इस रासायनिक कचरे का निपटान नहीं करेगी तो कौन करेगा? यह सवाल अब भी हमारे नेताओं और जिम्मेदार अधिकारियों के सामने खड़ा है।
तबादला, राजनीति और शिक्षा
अ क्सर राजनेताओं और कर्मचारियों का असली संबंध तबादले की धमकी देने, करवाने और रुकवाने का अधिक होता है। यही कारण है कि मंत्री या कहें नेता अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए प्रशासनिक कुशलता से अधिक तबादले करने के अधिकार पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। सोमवार को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की मीटिंग में नई तबादला नीति को मंजूर किया गया था। दो साल से तबादलों पर लगे प्रतिबंध को सरकार द्वारा समाप्त करने से न सिर्फ प्रशासनिक हल्कों में एक नई हलचल शुरू हो चुकी होगी, बल्कि तबादले करवाने वाले कर्मचारी नेता व दलाल भी सक्रिय हो चुके होंगे। नई तबादला नीति में कई अच्छे प्रावधान भी हैं, जिनमें विभागीय जांच व नैतिक पतन संबंधी प्रकरण चल रहे किसी अधिकारी-कर्मचारी को कार्यपालिक पदों पर पदस्थ नहीं करने का प्रावधान भी है। तीन साल की बंदिश को लचीलेपन में ही रखा गया है। शिक्षा विभाग के लिए अलग से तबादला नीति बनाई गई है। इसमें बच्चों की शिक्षा को प्रभावित नहीं होने देने का प्रयास किया गया है। प्रायमरी स्कूल में दो, मिडिल स्कूल में तीन शिक्षक कम से कम होंगे। विज्ञान विषयों के शिक्षकों के लिए भी अनिवार्य प्रावधान एक अच्छी पहल है। इन तबादलों से पहले शिक्षक संवर्ग पर विचार किया जाएगा। इससे राजनीतिक दबाव वाले शिक्षकों द्वारा स्थानांतरण की प्रवृति पर भी रोक लगेगी। नई तबादला नीति में संविदा कर्मचारियों के स्थान परिवर्तन पर रोक को हटाने पर कोई सहमति न बनना कुछ कर्मचारियों के मूलअधिकारों की अवमानना ही कही जा सकती है।
belan or neta
एक निर्दलीय नेता जी पहली बार चुनाव जीत का सदन में आए। उन्होंने एक सपना देखा। वे सोच रहे थे कि सदन में सिर्फ बैठना ही होता है या फिर भाषण देना होता है। पर वहां उन्होंने जूते चप्पल कुर्सियां और हाथापाई देखी तो घबरा गए।
उन्होंने अपने घर फोन लगाया कि अरे यहां तो दंगा हो रहा है। मुझे क्या करना चाहिए।
उनकी पत्नी ने कहा- अपना बैग देखो मैंने उसमें एक बेलन रख छोड़ा है। उसे निकालो और फेंक मारो?
नेता जी उलझ गए, पूछा धरामार वो क्यों रखा है?
पत्नी ने बताया ताकि तुमको मेरी याद आती रहे कि कोई गढ़बड़ काम करोगे तो तुमको मैं इसी से तो ठोकती थी, और अब भी ठोकूंगी?
अरे, च्ािंहुंक कर नेता जी ने बेलन छत की तरफ उछाल मारा ... टन टन ठन ठन होकर बेलन फर्श पर लुडकने लगा। चोट किसी को नहीं आई पर तत्कात सारे विधायक चुप हो गए और बेलन के सदन में आने पर शोर करने लगे। विधायकों को आश्चर्य था कि यह यहां आ कैसे गया। वे सब एक साथ इसे सरकार की साजिश करार देने लगे । उन्होंने सदन में बेलन की उपस्थित पर सरकार के खिलाफ नारे लगाए। और जांच कमीशन की मांग करने लगे।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें