भोपाल का बड़ा ताल । शाम का सिंदूरी सूरज ताल के भाल पर चमक रहा था जैसे कि राजा भोज तिलक लगा कर उस तरफ खड़े हैं। ताल की लहरें शाम की धूप की लाल झीनी भीनी साड़ी पहने थीं। लहरें ऐसी चमक रही थीं जैसे उसकी चूनर चमकीली किनार हो।
मैं कई सालों बाद भोपाल आया था और घर आने के बाद सबसे पहला ख्याल आया ताल के किनारों पर कुछ पल बिताऊं। यहां पहुंच कर मुझे अपने पिता के करीब होने जैसा अहसास हुआ। जैसे ये किनारे मेरे पिता की अंगुली है। सच वह कुर्सी जिस पर मैं कभी बैठता था आज भी वहीं थी बस उसका रंग बदल गया था। उस कुर्सी पर बैठ कर मैं सोचा करता था कि ताल मेरा दोस्त भी है और मेरा पिता भी। उसके किनारे पर मेरे मन में कई ख्याल आते थे।
....
कई बार ताल में तैरती नाव देख कर लगता था कोई विचार इस ताल में तैर रहा है। सच कहूं तो मुझे ताल ने अपना सब कुछ दिया। जीवन की लहरों से लड़ने की ताकत ताल की लगातार उठती लहरें दे रही थीं।
इसके किनारों पर जलते विदग्ध हृदयों को शीतलता देने वाले हवा के झोंकों में रखी ठंडक राहत देती है। प्यार देती है उस आग को सहन करने वाली। ताल के ये किनार कई बार आंसुओं से भीगे हैं। इन आंसुओं में कई कहानियां हैं जो यहीं इन किनारों में दफन हैं। कहीं वादा किया किसी ने तो कहीं बदलते वक्त के साथ सिर्फ दोस्ती है कमिटमेंट नहीं। हम प्यार करेंगे और करते रहेंगे जब तक चलता रहेगा। फिर किसी दिन आके यहीं तोड़ देंगे वह कसम जो किसी गांठ की तरह हमने बांधी थी।
आज में कई सालों बाद भोपाल की ताल पर टहल रहा हूं। बहुत कुछ इसके किनारों को बदल दिया है। पक्के कर दिए हैं। पर वो पत्थरों पर बैठ कर पानी को झूले की अभिलाषा यहां पूरी नहीं होती। पानी के करीब रहने का अहसास इंसान की आदिम भूख रही है। शायद इंसानी सभ्यता और आदिम जमाने में भी इंसान को पानी चाहिए होता था। सच में यह ताल भी जब बनाया गया होगा तो यही सोच कर कि इंसान पानी के करीब रहेगा। भोपाल के इस ताल को मैं अपने दिल में वैसे ही दर्ज करता हूं जैसे आंखों में पिता की यादें।
अब यहां इस ताल पर वैसी शांति नहीं है। लोगों की भीड़ शाम को बहुत बढ़ जाती है। मुझे लगता है कि इस भीड़ में हम भी हैं। ये सारे चेहरे ताल के किनारे अपने अपने होने का अर्थ खोजते हैं।
मुझे बढ़ती भीड़ कई बार परेशान करती लेकिन मैंने इस भीड़ में भी अब ताल के साथ रहना सीख लिया है। आइए आप भी सभ्यता के हजारों साल पुराने इस ताल से दोस्ती कर सकते हैं। बस उसके किनारों पर जाना होगा।