देवयानी भारद्वाज तुर्की में औरतों ने मर्दों के खिलाफ अभियान चलाया है कि सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करते समय वे अपने पैर समेट कर बैठें। पहली बार इस खबर को पढ़ते ही हल्की-सी हंसी आती है और फिर शुरू होता है यादों का सैलाब। पिछले कुछ सालों से तो शायद उम्र बढ़ने के साथ कुछ ऐसा आत्मविश्वास आ गया है कि बगल की सीट पर बैठा व्यक्ति अगर कोहनी अड़ाए तो मैं भी मजबूती से अपने हाथ को वहीं टिका कर बैठ जाती हूं। लेकिन बात सिर्फ कुर्सी के हत्थे पर कोहनी टिकाने भर की नहीं है। कुछ ही दिन पहले दिल्ली की मेट्रो में यात्रा के दौरान भीड़ कुछ ज्यादा थी। सभी लोग खड़े थे और सबके शरीर आपस में रगड़ भी रहे थे। लेकिन अचानक मैंने महसूस किया कि मेरे ठीक पीछे एक व्यक्ति इस तरह सट कर खड़ा था कि उसने अंदर तक एक लिजलिजे अहसास से भर दिया। इसके बाद मैं अपनी पूरी कोहनी उसके सीने में गड़ा कर खड़ी रही। लेकिन व्यक्ति अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। आप प्रतिरोध भी करना चाहें तो कहा जाएगा कि क्या करें, भीड़ है, सभी लोग एक-दूसरे से सटे खड़े हैं, आपको ही एक व्यक्ति के सट कर खड़े होने पर एतराज क्यों...! दरअसल, यह व्यक्ति के अपने और अन्य के निजी स्पेस की इतनी परिष्कृत समझ की अपेक्षा रखता है जो हमारे समाज में खोजने पर भी बहुत मुश्किल से मिलती है। ऐसा नहीं है कि निजता का यह अतिक्रमण सिर्फ अनजान लोग करते हों। मुझे याद आता है कि एक सहकर्मी को मेरे साथ यात्रा पर जाना था। हम लोगों को एक के बाद एक कई शहरों में जाना था और इस क्रम में कहीं बस और कहीं ट्रेन बदलते हुए हम यात्रा कर रहे थे। मैंने एकाधिक बार यह महसूस किया कि बस में साथ बैठने के दौरान कभी उनका पैर तो कभी उनका कंधा मेरे साथ टकरा जाता था। लोकल बसों में दो-चार बार मैंने इन स्थितियों को नजरअंदाज किया, खुद थोड़ा दूर हट कर बैठ गई या अपने हाथ-पैर समेट लिए। आखिर ऐसी स्थिति आई जब आसपास की सीट पर हम पूरी रात बस की यात्रा पर थे। दिन भर की थकान के कारण मेरी आंख लग जाती और फिर वही! कभी उनका घुटना और कभी कोहनी रगड़ खाते रहे। मुझे उन्हें कहना ही पड़ा- ‘महाशय, आप अपने हाथ-पैर समेट कर बैठें। मुझे इससे असुविधा हो रही है।’ मेरे लिए यह कहना पर्याप्त असुविधाजनक था, क्योंकि आप अपने परिचित के इरादे पर संदेह व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह था कि क्या उन्हें यह अहसास नहीं होना चाहिए कि वे अपनी सहकर्मी के निजी स्पेस की अवहेलना |
शुक्रवार, मई 23, 2014
मर्दों के खिलाफ अभियान
शुक्रवार, मई 09, 2014
विजया सती ki ek achchi post
कोरिया गणराज्य की राजधानी सिओल |
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विजया सती कोरिया गणराज्य की राजधानी सिओल चारों ओर छोटे पर्वतों से घिरी है, बीच में हान नदी बहती है। यह शहर साठ के दशक के बाद तेजी से घनी आबादी वाले महानगर के रूप में विकसित हुआ। प्रोफेसर राय कई वर्षों से इस देश के दक्षिणी भाग में हिंदी शिक्षण कर रहे हैं। सर्दी के अंत में नया परिचय हुआ उनसे। आने वाले बसंत के लिए हमें आगाह किया उन्होंने- ‘यहां नंगे पेड़ों पर फूल पहले आते हैं और फिर हरियाली। बसंत यहां धमाके के साथ आता है।’ फिर जाना कि ‘चेरी-ब्लोसम’ बसंत के आरंभ का यही उत्सव है, जब सर्दी की ठंडी हवाएं और शून्य से नीचे पहुंचता तापमान विदा होता है और कतारबद्ध पेड़ चेरी के हल्के पीले और सफेद रंग के फूलों से लद जाते हैं। जरा ठंड कम होते ही ऐसे अनेक उत्सव आरंभ होते हैं, जब सैलानी इन खिले अद्भुत फूलों के बीच टहलते हुए शहर को इसके सुंदरतम रूप में देख सकते हैं। यह अच्छे मौसम, फूलों के सौंदर्य, बढ़िया भोजन और परंपरागत संस्कृति का आनंद लेने का अवसर होता है। पहले-पहल जापानी शासन के समय यहां चेरी के खिलने के अवसर को उत्सव के रूप में परिचित कराया गया था। जापान द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में समर्पण के बाद यह उत्सव आज भी मनाया तो जाता है, मगर इसके आरंभ के एक विवादास्पद पहलू को नजरअंदाज नहीं किया गया था और आधिपत्य के प्रतीक के रूप में देखे गए बहुत से चेरी के वृक्ष एक समय काट दिए गए थे। इस कटु सत्य के बावजूद देखने में यही आया कि शहर में प्रकृति को बचाए रखने की मुहिम तेज है। अगर पहाड़ के ऊपर घर बसे हैं तो सड़क सुरंग से होकर जा रही है। पेड़ों को काटे बिना पुल बनाए गए हैं। पत्थरों के बीच हरियाली समेटी गई है और फूल खिलाए गए हैं। हान नदी के किनारे प्रकृति के साथ तकनीकी विकास का अनूठा संगम देखने को मिला। नदी के हर कोने से सिर ताने खड़ी इमारतें दिखाई देती हैं, जिनके नमूने अधुनातम तकनीक को प्रदर्शित करते हैं। नदी के तट की ओर जितना बढ़ते जाते हैं, आधुनिक जीवन की छवियां साकार होती जाती हैं। वर्जिश के लिए जुटे नवीनतम उपकरण, नदी किनारे लंबी सैर की खातिर अकेले या साथी के साथ मस्ती से चलाने के लिए नए नमूनों की साइकिलें, स्केटिंग करते बच्चे, हवा से बचने के लिए टेंट के भीतर लेटे-बैठे-सोए नगरवासी। नदी के चारों ओर दृष्टि दूर-दूर जहां तक जाती है, वहां तक दिखाई देता है बहुमंजिली इमारतों का जाल, जिनमें रिहाइश, दफ्तर और होटल हैं। लेकिन प्रकृति के बीच आना, उसके साथ घुल-मिल जाना भी यहां के वासी नहीं भूले हैं। इसलिए छुट्टी का दिन छोटे-छोटे पहाड़ों पर चढ़ने का दिन भारत के साथ अपने सांस्कृतिक संबंध को यह देश इस रूप में याद करता है कि किसी समय अयोध्या की एक राजकुमारी का विवाह यहां के राजकुमार के साथ हुआ। भारत में भी इस तथ्य को मान्यता मिली और दोनों देशों ने पारस्परिक सहमति से राजकुमारी की स्मृति में एक स्मारक अयोध्या प्रशासन के सहयोग से मार्च 2001 अंकित किया। हरिऔध की एक बूंद सरीखी जब यहां पहुंच गई हूं तो इन दो समानताओं के अतिरिक्त कि दोनों देशों का स्वाधीनता दिवस एक ही तिथि को है और पराधीनता से मुक्ति के बाद दोनों देशों का विभाजन भी हुआ, कुछ अधिक की खोज में दत्तचित्त होना चाहती हूं! |
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