शुक्रवार, नवंबर 01, 2013

रंग बिरंगा



इस दुनिया में कौन है रंगा कौन है बिल्ला
नरियल खाले फेंक दे नट्टी खुल्ला

तोड़ के मर्म पते की बातें जग में कर दे हिल्ला
इस दुनिया में कौन है रंगा कौन है बिल्ला

पता नहीं किसने क्या कहा था किसके बारे में
जब नहीं था उसके पास जीवन का हिल्ला

तब वह था इस दुनिया का रंगा बिल्ला
लेकर चला गया चुप चुप अपने कर्मों का हिल्ला

लौट के आया ठहरा देखा कुरते में कुछ ऐसा
मारी चोट चौराहे पर भाग कोई कुत्ता सा चिल्ला

तोड़ तोड़ कर कर दी उसने दुनिया की पसली
जीवन का गणित नहीं समझा था बिल्ला

असुरक्षित था सब कुछ यहां वहां तक
केवल नेता करता रहा सुरक्षित अपना किल्ला

इतने दिन तक देख देख कर सोच रहा था
ये दुनिया को कौन चलाता है कौन बड़ा है बिल्ला

ये नहीं रुकेगा ये कबीर का चरखा है
कातेगा जब सूत निकलेगा दुनिया का पिल्ला

यहां वहां सब जगह हैं बिल्ला रंगा चारों ओर
ओड़ के आते हैं एक कहानी फिर करते हैं चिल्ला


रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
टॉप-12, हाईलाइफ कॉम्पलेक्स, चर्चरोड, जिंसी जहांगीराबाद, भोपाल, मप्र 462008
9826782660

खुशहाली का टर्नओवर

  ध  न सोना चांदी के रूप में तो है ही उसे आधुनिक युग में टर्नओवर के रूप में भी देखा जाता है। धन का त्यौहार धन तेरस पर धन की पूजा समृद्धि के अर्थों में की जाती है। आज व्यक्ति की जितनी समृद्धि का महत्व है उतना ही राष्ट्र की समृद्धि का भी है। अगर देश की समृद्धि के बिना निजी धन वैभव को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता है। आज हम अपनी समृद्धि ही नहीं देश के लिए भी खुशहाली की कामना कर सकते हैं। गत तिमाही में देश का समृद्धि यानी जीडीपी का हिसाब कुछ ठीक नहीं रहा। सितम्बर में समाप्त तिमाही में जीडीपी विकास दर पूर्व में लगाए गए अनुमानों से भी अधिक लुढ़क गई है। वर्ष भर पूर्व की तुलना में गिरावट डेढ़ फीसद (8.4 की तुलना में 6.9) है। अर्थव्यवस्था के आठ मुख्य क्षेत्रों में भारी गिरावट दर्ज की गई है। जिनमें स्टील, सीमेंट और कोयला भी शामिल है। इससे स्पष्ट है कि औद्योगिक क्षेत्र में गिरावट आ रही है। खनन क्षेत्र में तो विकास दर नकारात्मक हो गई है। कृषि क्षेत्र भी बेहतर नहीं है जिसकी विकास दर साल भर पूर्व के 5.4 से गिरकर 3.2 फीसद रह गई है। सिर्फ सेवा क्षेत्र में सरकारी खर्च की बढ़ोतरी ने विकास दर को कुछ संभाला है लेकिन सरकारी खर्च बढ़ने का परिणाम यह है कि राजकोषीय घाटा पहले सात माह में ही यह उसके 75 फीसद तक पहुंच गया है।
यह सारी बातें अर्थव्यवस्था की बिगड़ती सेहत
का संकेत हैं। आर्थिक चुनौतियां सिर्फ विदेशी कारणों से नहीं आई हैं। इसकी वजह घरेलू हालात भी हैं। राजनीतिक व्यवस्था का गतिरोध और घोटालों के खुलासों से काफी समय तक सरकार जरूरी फैसलों को टालती रही। अब जबकि उसने कुछ कड़े फैसले लिए हैं तो राजनीतिक फायदे से आगे न सोच पाने के विपक्षी नजरिए ने उन पर अमल को मुश्किल बना दिया है। तेज गति से विकास करने वाली कुछ अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने के बावजूद देश कई वजहों से आर्थिक परेशानियां झेल रहा है। विशाल जनसंख्या एवं भारी उपभोग की वजह से भारत आज दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में शामिल हो चुका है। लेकिन आर्थिक कुप्रबंधन, नीतिगत स्तर पर शिथिलता, बड़े-बड़े घोटाले, लालफीताशाही, दूरदर्शी सोच का अभाव जैसे कई मसले हैं जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था दबावों का सामना कर रहा है। धन प्रबंधन के मामले में हमारी कमजोरी एक बड़ी परेशानी का कारण बनता जा रहा है। वित्तीय साक्षरता के मामले में भारत अभी तक बड़े स्तर पर कोई कोई कारगर प्रयास नहीं कर रहा। बेहतर धन प्रबंधन का सीधा संबंध तार्किक वित्तीय साक्षरता से होता है। देश में वित्तीय रूप से जितने लोग साक्षर होंगे उनमें वित्त प्रबंधन कला का विकास होगा। ऐसा नहीं होता है तो हम अपने देश की समृद्धि की कल्पना नहीं कर सकते। आज देश में तमाम तरह की चुनौतियां हैं जिन पर एक सख्त और दूरदर्शी राजनीतिक सोच की आवश्यकता है। धन के इस त्योहार पर हम अपने देश की समृद्धि के लिए एक मिनट सोचें। यही सोच हमें अपने साथ देश को समृद्धि लेकर आएगी।