इस दुनिया में कौन है रंगा कौन है बिल्ला
नरियल खाले फेंक दे नट्टी खुल्ला
तोड़ के मर्म पते की बातें जग में कर दे हिल्ला
इस दुनिया में कौन है रंगा कौन है बिल्ला
पता नहीं किसने क्या कहा था किसके बारे में
जब नहीं था उसके पास जीवन का हिल्ला
तब वह था इस दुनिया का रंगा बिल्ला
लेकर चला गया चुप चुप अपने कर्मों का हिल्ला
लौट के आया ठहरा देखा कुरते में कुछ ऐसा
मारी चोट चौराहे पर भाग कोई कुत्ता सा चिल्ला
तोड़ तोड़ कर कर दी उसने दुनिया की पसली
जीवन का गणित नहीं समझा था बिल्ला
असुरक्षित था सब कुछ यहां वहां तक
केवल नेता करता रहा सुरक्षित अपना किल्ला
इतने दिन तक देख देख कर सोच रहा था
ये दुनिया को कौन चलाता है कौन बड़ा है बिल्ला
ये नहीं रुकेगा ये कबीर का चरखा है
कातेगा जब सूत निकलेगा दुनिया का पिल्ला
यहां वहां सब जगह हैं बिल्ला रंगा चारों ओर
ओड़ के आते हैं एक कहानी फिर करते हैं चिल्ला
रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
टॉप-12, हाईलाइफ कॉम्पलेक्स, चर्चरोड, जिंसी जहांगीराबाद, भोपाल, मप्र 462008
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