गुरुवार, मई 31, 2012

डसता खनन माफिया

 

खनन कारोबार में आपराधिक तत्व इतना अधिक मनोबल पा चुके हैं कि वे सीधे कार्रवाई कर रहे अधिकारियों पर वाहन चढ़ा रहे हैं। यह प्रशासनिक राजनीतिक अदूरदर्शिता का परिणाम है।

मु रैना में चंबल नदी से अवैध तरीके से रेत भरकर धौलपुर की ओर ले जा रहे ट्रक को राजस्थान पुलिस के हवलदार और सिपाही ने रोकने का प्रयास किया तो ट्रक चालक ने दोनों को कुचल दिया। यह खबर सिर्फ दुर्घटना की सामान्य खबर नहीं है। यह हमारे प्रशासन, राजनीतिक नाकारापन और आपराधिक लोगों के हाथों में संसाधनों की लूट की वीभत्स और खूनी लंबी कहानी का परिणाम है। यह कहानी खानों, अवैध जल जंगल और जमीन  के दोहन से लिखी जा रही है। इस घटना से पहले और भी इस तरह के हमले हो चुके हैं। सामान्य से इंसान के रूप में ट्रक या ट्रैक्टर चलाता ड्रायवर इस तरह के हमलों को अंजाम नहीं दे सकता। जब तक कि इन मातहत कर्मचारियों को यह न कहा जाता होगा कि कुछ भी हो जाए गाड़ी पकड़ना नहीं चाहिए। यह ताकत राजनीतिक प्रशासनिक कमजोरी की सड़ांध में पैदा होती है। यहां लोभ, लालच, हिंसा और अपराध को कैक्टस की तरह पाला पोसा जाता है। हवलदार को कुचलने की घटना लाचार होती प्रशासनिक राजनीतिक सामाजिक हैसियत का दीवाला निकल जाने का उदाहरण है।
यह अकेली घटना होती कि खनन माफिया ने प्रशासन के जिम्मदार लोगों पर ट्रक चढ़ाने की तो शायद यह राज्य के संगठित गिरोहों द्वारा लूट पर ध्यान न जाता लेकिन इससे पहले लगातार इस तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं।  7 मार्च को शिवपुरी के कोलारस में पत्थर माफिया ने एसडीओ के वाहन पर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश की। दतिया में इसी दिन कंजोली रेत खदान पर वर्चस्व के लिए दो पक्षों में फायरिंग हुई। 8 मार्च को मुरैना  जिले में कार्रवाई करने पहुंचे युवा आईपीएस अफसर नरेंद्र कुमार को ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला गया। 18 अप्रैल को देवास के कन्नौद में अवैध उत्खनन को रोकने गर्इं तहसीलदार मीना पाल पर खनन माफिया ने जेसीबी चढ़ाने की कोशिश की। तहसीलदार ने नाले में कूदकर अपनी जान बचाई।
अवैध खनन माफिया के बुलंद हौसलों की ये खबरें प्रशासनिक मशीनरी और समाज में व्याप्त अवैधानिक तरीकों पर यकीन करने की प्रवृत्ति है। जब लोग यह सोचने लगते हैं कि अवैध कारोबार ही उनका धंधा है तो यह खतरनाक संकेत है। खतरनाक इस मायने में कि उन्हें अपने आसपास फैली कानूनी और प्रशासनिक  व्यवस्थाओं पर विश्वास नहीं होता है। वे यह महसूस करते हैं कि प्रशासन कुछ नहीं करेगा, तभी अवैध करोबार की यह प्रवृत्ति बढ़ती है। प्रशासनिक व्यवस्था राजनीतिक संरक्षण के आगे असहाय हो जाती है। दूसरा पक्ष ये है कि अपराध की अपेक्षा में अवैध खनन से होने वाला आर्थिक लाभ इस माफिया को अधिक दिखता है।  कोई भी व्यक्ति या समूह तभी अवैध कारोबार की तरफ तभी जाता है जब वह उससे बचने के तरीके पहले इजाद कर लेता है। ये घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि अवैध खनन के मामले में हमारा कानून लचर और लाचार है।  राजनीतिक नेतृत्व को सोचना होगा कि आखिर अधिकारी कब तक अपनी जान कुर्बान करते रहेंगे?

सोमवार, मई 28, 2012

केंद्र,भ्रष्टाचार और उसके पंद्रह मंत्री

 

टीम अन्ना के आरोपों से सरकार ही हैरान नहीं है, भविष्य के नेता भी चिंतित नजर आते हैं। इसका कारण है कि जनता अब जिम्मेदारों से कुछ सवाल करने लगी है।

टी  म अन्ना का भ्रष्टाचार पर हल्ला बोलो अभियान अपना दायरा नहीं बढ़ा रहा है। शनिवार को उसने प्रेस कांफ्रेंस में यह इरादा जाहिर कर दिया। टीम अन्ना ने सबूतों के साथ टीम अन्ना ने प्रधानमंत्री समेत 15 केंद्रीय मंत्रियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की है। इसी के साथ टीम अन्ना ने जांच नहीं होने पर 25 जुलाई से आंदोलन का ऐलान भी किया है। यह वैसी ही बात है कि भ्रष्टाचार की वेदी पर टीम अन्ना यूपीए सरकार से पंद्रह मंत्रियों की कुर्बानी मांग रही है। अब कौन सरकार अपने ही मंत्रीमंडल पर सामूहिक अभियोग चला सकती है? टीम अन्ना की मांगें जायज या नाजायज हैं इससे अधिक महत्वपूर्ण ये है कि उन्होंने एक सरकार के सामने धर्म संकट खड़ा कर दिया। यह ऐसा धर्म संकट है कि इसमें जन सामान्य भी उलझ गया है। कोई एक या दो मंत्री की बात नहीं, प्रधानमंत्री समेत यहां पूरे पंद्रह मंत्री हैं। टीम जो आरोप लगा रही है वे कमीशन, लाभ कमाने या लाभ पहुंचाने के हैं।  येआरोप अलग अलग समय और उनके कार्यकालों के हैं।
टीम के आरोपों पर तिलमिलाए विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण के खिलाफ मानहानि का केस दायर करने की बात कही है। कृष्णा की अरविंद केजरीवाल को लिखी चिट्ठी में कहा कि उन पर लगाए गए आरोप गलत और बेबुनियाद हैं और जो भी तथ्य उनके बारे में बताए गए हैं वो गलत हैं। यह अलग बात है कि ये आरोप कितने सही और कितने गलत निकलेंगे लेकिन जब टीम अन्ना जांच के लिए सरकार को छह जजों के नाम भी सुझाव देती है और कहती है कि जांच का काम इन छह में से किन्हीं तीन जजों को सौंपा जा सकता है। सरकार उनके द्वारा बताए जजों से जांच करवाए।  ऐसे में तब लगता है कि आखिर टीम अन्ना आंदोलन कर रही है या वैचारिक आंदोलन के नाम पर माइक्रो तानाशाही को लागू कर रही है?
 इस समय अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र भेजा है, जिसमें 15 मंत्रियों के खिलाफ आरोपों की  जानकारियां हैं।  इस पत्र को  ‘चार्जशीट’ नाम दिया गया है।  वास्तव में देखा जाए तो  यह सूक्ष्म स्तर पर संबैधानिक व्यवस्थाओं का मजाक है। टीम अन्ना छह जजों को नामित क्यों कर रही है? देश और सरकार द्वारा नामित जजों पर यकीन नहीं? या केवल छह जज ही भारत में हैं जो इन मंत्रियों की जांच कर सकते हैं? यह अविश्वास का बीजारोपण है।  इससे देश में एक दूसरे तरह की अराजकता का माहौल पैदा हो सकता है। टीम अन्ना जनजागरण का काम कर रही है तो ऐसा भी लगने लगता है कि वह राजनीतिक वैचारिक असंतुलन का शिकार भी है।

रविवार, मई 13, 2012

सुशासन का सम्मान

  किसी भी संस्था और संस्थान के लिए पुरस्कार उसके कामों को रेखांकित करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब कोई पुरस्कार या सम्मान दिया जाता है तो इसका तात्पर्य है कि यह सम्मान प्रदेश में हो रहे नवाचारों को रेखांकित किया गया है। सरकार को जब पुरस्कार मिलता है तो वह एक नई ऊर्जा ग्रहण करती है। मध्यप्रदेश के लिए यह ऊर्जा संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रदान की गई है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा मध्यप्रदेश सरकार के लोकसेवा गारंटी अधिनियम को इंपू्रविंग द डिलीवरी आफ पब्लिक सर्विसेज श्रेणी में दूसरा पुरस्कार प्रदान किया है।
मध्यप्रदेश को यह पुरस्कार जून में आयोजित सम्मान समारोह में प्रदान किया जाएगा।  वर्ष 2012 इस संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है कि ये संयुक्त राष्ट्र लोकसेवा दिवस और पुरस्कारों की दसवी वर्षगांठ है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 23 जून को संयुक्त राष्ट्र लोकसेवा दिवस घोषित किया है। इसका उद्देश्य स्थानीय राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकसेवा में मूल्यों और गुणात्मकता को प्रोत्साहित करना है। उल्लेखनीय है कि 73 देशों के 471 आवेदनों में से इस पुरस्कार के लिए मध्य प्रदेश को भी चुना गया। मध्यप्रदेश का चुना जाना इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि उसे चुन लिया गया है। यह इस बात का प्रतीक भी है कि सरकार पूरी दूरदर्शिता और लोक सेवा की भावना से काम कर रही है। सरकार में बैठे जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी कहीं न कहीं अपनी जिम्मेदारियों को विस्तार पूर्वक देखते हैं। वे यह जानते हैं कि आने वाले वक्त के लिए वे क्या नया कर सकते हैं।
इस सम्मान के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बधाई के हकदार हैं।  मध्य प्रदेश पहला राज्य है जिसने सिटीजन चार्टर को कानून बनाने का काम किया है। लोकसेवा गारंटी अधिनियम जनता के लिए अधिकतम सुविधा और प्रशासनिक सेवा की सुनिश्चित्ता को तय करता है। लोकसेवा गारंटी अधिनियम के तहत 52 विभागों को शामिल किया गया है। इस अधिनियम के तहत एक निर्धारित समय सीमा में सेवाएं उपलब्ध कराना होता है, तथा ऐसा नहीं किए जाने पर संबंधित कर्मचारी-अधिकारी से जुर्माना  लेकर संबंधित व्यक्ति को उपलब्ध कराया जाता है। यह पुरस्कार इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता कि  मध्यप्रदेश में लोक सेवा गारंटी अधिनियम के तहत एक करोड़ 11 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे जिसमें से एक करोड़ दस लाख आवेदनों का निराकरण कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि इनमें से 16 लाख आवेदन आनलाइन प्राप्त हुए थे।  समय सीमा में सेवाएं उपलब्ध नहीं कराए जाने पर 49 अधिकारियों के वेतन से जुर्माने की राशि काटकर 113 व्यक्तियों को उपलब्ध कराई जा चुकी है। यह कानून प्रदेश के सुशासन की संभावनाओं के विस्तार का प्रतीक है।