रविवार, अप्रैल 04, 2010

कला में देखना





रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
इंट्रो
कला के सौंदर्य के रस को ग्रहण करने के लिए अवश्यक है कि रसिक की चेतना में स्वीकार भाव कितना है।

शेक्सपीयर ने कहा था कि सौंदर्य देखने वाले की आंखों में होता है। यह सच है कि यह देखने से ही संभव होता है। कला के संदर्भ में सौंदर्य को देखना सामान्य घटना नहीं होती। इसे संस्कृत आचार्य मम्मट ने प्रशिक्षण से ग्रहण करने योग्य कहा है। यही चीज शास्त्रीय संगीत जैसे माध्यम पर लागू होती है। इसे दो लोगों की बातचीत से समझा जा सकता है- दोनों व्यापारी थे। वे शास्त्रीय संगीत सभा में गए। एक को बचपन का अनुभव था, वह जानता था कि राग और आलाप क्या होता है। दूसरा अपने मित्र की मित्रतावश गया था। उसे इस तरह के रसास्वादन का प्रशिक्षण नहीं था और उसकी चेतना भी संवेदनशीलता के उच्चशिखर पर नहीं छू रही थी। एक मित्र शुरुआत से ही उस संगीत से जुड़ गया जबकि दूसरा सिर्फ इधर उधर देख रहा था। वह यह नहीं समझ पा रहा था कि आखिर वह कौन सी चीज है, जिसे सुन कर इतने लोग झूम रहे हैं। जिस रसिक को इसका प्रशिक्षण न मिला हो या उसकी चेतना संपन्न न हो तो वह इस संगीत के रागों को ग्रहण नहीं कर सकता। यह वैसे ही है जैसे एक मॉडर्न आर्ट के किसी केनवास को देख कर कोई बिलकुल रस ग्रहण नहीं कर पाता। कला के संदर्भ में सौंदर्य को प्राप्त करना मन के संवेदनों का झंकृत होना है। दूसरी बात आपकी चेतना में स्वीकार भाव कितना है? इस पर कला के सौंदर्य का आस्वादन निर्भर करता है। कभी-कभी यह भी संभव होता है कि कोई पहली बार संगीत और कला को देखने सुनने गया और राग या रंग की जानकारी के बिना भी उसने रसास्वादन प्राप्त किया।
यह क्यों संभव हुआ? क्योंकि उसकी चेतना में स्वीकार भाव था। वह उस संगीत से या केनवास के रंगों से सहमत हो गया। उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया। कला के सौंदर्य के रस को ग्रहण करने के लिए अवश्यक है कि रसिक की चेतना में स्वीकार भाव कितना है। इसके बिना कोई सौंदर्य आप ग्रहण नहीं कर सकते। कला का दूसरा पक्ष ‘देखने’ का होता है। यह ‘देखना’ एकल और परस्पर दो तरह से होता है। परस्पर देखने का उदाहरण दो प्रेमियों को एक दूसरे को देखने में घटता है और एकल उदाहरणों में जब कोई अलेला ही किसी पहाड़ को देख कर कविता रचता है या पेंटिंग बनाता है तो यह एकल देखना हुआ जो कि सौंदर्य के आस्वादन का कारण बनता है। यहां ‘देखने’ का अर्थ है कि जैसी दिखाई दे रही है उसे वैसा ही ग्रहण करना। इस ‘देखने’ से किसी सौंदर्य को पहचाने जाने की घटना घटती है। सौंदर्य के बीच शब्दहीन आदान प्रदान होता है? किसी भी सौंदर्य का घटित होना, आस्वाद करने वाला और प्रस्तुत करने वाले दोनों के बीच सौंदर्य पूर्ण संवाद से घटित होता है।

1 टिप्पणी:

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी रचना। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।